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कोरोना की इस महामारी ने आखिर किसे प्रभावित नही किया है? इसने न सिर्फ हमें और आपको, बल्कि पूरे देश को ही संकट में डाल रखा है, कोरोना के कारण लगे लॉक डाउन की वजह से दफ्तर, स्कूल और कॉलेज इन सभी पर बुरा असर पड़ा है। इन हालातों में जब बाहर निकलना सुरक्षित नहीं रहा तो हम सभी ने अपने काम-काज़ को घर से ही जारी रखना ठीक समझा। नतीजन, हमारी रोजाना की जिंदगी से लेकर हमारे काम करने के तरीके तक, सभी में बदलाव आया है। इन्हीं बदलावों की कड़ी का पानी भी एक अहम हिस्सा है, शायद इस बात से आपको हैरानी भी होगी मगर कोविड के वक्त में हमने बेतहाशा पानी की बर्बादी की है। ऐसा देखा गया है कि गुरुग्राम, दिल्ली, अहमदाबाद, गाजियाबाद तथा लखनऊ जैसे बड़ी आबादी वाले शहरों में पानी की मांग को लेकर एक चौथाई से भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इस बात को समझने के लिए हम अपना ही उदाहरण ले सकते हैं, जहां पहले हम और आप दिन में लगभग 3 से 4 बार ही हाथ धोया करते थे कोरोना के डर से अब कहीं ज्यादा बार ऐसा करते हैं। पहले जहां एक ओर सुबह दफ्तर या स्कूल पहुंचने के लिए वक्त की पाबंदी हुआ करती थी आज इसके न होने के कारण लोगों के औसतन नहाने के समय में भी इजाफा हुआ है। जहां पहले पानी का इस्तेमाल सार्वजनिक और रिहायशी इलाकों में बटा हुआ करता था अब ज्यादातर इसका घरेलू कामों में ही इस्तेमाल हो रहा है, इसी बात को लेकर बहुत से जानकार मानते हैं कि कोविड के वक्त में पानी के इस्तेमाल का स्थानांतरण ही इसकी बर्बादी के पीछे सबसे बड़ी वजह है। आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा और दिल्ली में ज़मीन के नीचे पानी का लेवल पिछले 4 दशकों में 16 मीटर नीचे चला गया है, ऐसे में आएदिन इस तहर से पानी की बर्बादी आने वाले समय में हमे ही मुसीबत में डालेगी।


क्या है उपाय ?
(1) बार-बार पानी से हाथ धोने की बजाय सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें।
(2) घर की सफ़ाई के लिए गीले कपड़े के पोछे का इस्तेमाल करें।
(3) बारिश के पानी को इकट्ठा कर घरेलू कामों में उसका इस्तेमाल करें।
नीचे दिए गए ग्राफ़ से आप रोजना पानी के घरेलू इस्तेमाल का अंदाज़ा लगा सकते हैं:

चलिए, यह तो हुई पानी की बर्बादी की बात मग़र क्या अपने इस बात पर ध्यान दिया है कि जो गन्दा पानी कोविड के अस्पतालों और क्वारेन्टीन सेन्टरों से निकला है आख़िर उसका हमारी जिंदगी पर क्या असर पड़ सकता है? आइए, अब हम आपको यह भी बताते हैं।

कोविड सेंटर से निकलती गंदगी
दरअसल जिस प्रकार से डॉक्टरों की टीम आम लोगों के बीच कोविड के टेस्ट कर रही है, वैसे ही दुनिया भर के कई देशों में कोविड सेन्टरों से निकलने वाली गंदगी का भी टेस्ट किया गया। इसकी मदद से यह जानने की कोशिश की गयी, कि क्या इनसे भी वायरस के फैलने का खतरा बना हुआ है? इस परीक्षण का नतीजा काफी मिलाजुला रहा, जहां पर कुछ देशों ने खतरे को काफी कम आंका तो वहीं पर कई देश ऐसे भी थे जिन्होंने नदी एवं नालों से उठाए गए सैंपल से यह पता लगाया कि शहर के किस इलाके में वायरस तेजी से फैल रहा है। ऐसा भी बताया गया कि यह वायरस इन हालातों में लगभग 16 घंटे तक सक्रिय रह सकता है।

आये दिन हमें अखबारों और टीवी चैनलों की मदद से यह भी देखने को मिलता है कि; कई सारे अस्पतालों ने पीपीई किट, ग्लव्स, मास्क और तमाम ऐसे चीज़े जो मरीजों के इलाज़ के समय इस्तेमाल में आती हैं, उनको किसी तालाब या फिर गड्ढे पर यूं ही खुले में फेंक दिया। ऐसे में यह वायरस आसपास रहने वाले जानवरों की मदद से हम तक भी पहुँच सकता है। अलग-अलग हिस्सों से आने वाली गंदगी किस तरह से ताज़ा पानी के स्रोतों को ख़राब करती है, नीचे दिए गए चित्र से आप इसको बेहतर समझ पाएंगे।

क्या कहते हैं आंकड़े ?

अगर हम भारत से जुड़े कुछ आंकड़ों पर नजर डालें तो हमें पता चलेगा कि हमारे देश मे हर रोज 38 हज़ार मिलियन लीटर पानी नालों से सीधा बहकर हमारी नदियों में जा गिरता है, देशभर में प्रदूषण के स्तर पर नजर रखने वाली संस्था “सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड” के आंकड़े बताते हैं कि हमारे पास मौजूदा वक्त में रोज के संक्रमित एवं गंदे जल का महज़ 38% हिस्सा ही फिल्टर करने की क्षमता है। उत्तर भारत में लगी फैक्ट्रियों से निकलने वाले गन्दगी का 12 प्रतिशत हिस्सा नालों से होकर सीधा गंगा एवं यमुना में जा मिलता है, ऐसे में कोविड सेन्टरों से निकलने वाली गंदगी नदियों के आसपास के पर्यावरण तथा उनके किनारों पर बसे लोगों के लिए चिंता का कारण जरूर बनी हुई है।

आखिर इससे बचने का उपाय क्या है?

कोविड सेंटरों से निकलने वाले गंदगी पर डब्ल्यूएचओ यानी “वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन” का कहना है कि, प्रति लीटर 0.5 मिलीग्राम क्लोरीन की मदद से इस समस्या से पार पा सकते हैं। इसके साथ ही जिन जगहों पर ऐसा करने में कोई दिक्कत आ रही है, तो उन इलाकों में लोगों की आबादी से दूर लैगून (पानी की सफाई के लिए एक तरह का तालाब) की मदद से हम इस वायरस को ख़त्म कर सकते है। साथ ही, अगर कोई भी संस्थान ग़ैर ज़िम्मेदाराना तरीके से गंदगी को फैलाता है तो उसकी जानकारी अपने इलाके के अधिकारियों को जरूर दें। हम और आप अपने आस पास के लोगों तथा ग्राम पंचायत की मदद से ऐसे बन्द नाले भी बना सकते हैं जिनसे गंदा पानी इंसान के संपर्क में नहीं आये।

इस कोरोना की महामारी ने हम सभी को नुकसान तो जरूर पहुंचाया है, लेकिन साथ ही इसने पर्यावरण से तालमेल बिठाकर चलने की एक सीख भी दी है। हम सभी ने यह देखा है कि आखिर किस तरह सालों से नाले की तरह बहने वाली यमुना नदी का पानी भी साफ हो गया।

जहां एक ओर दिल्ली की हवा सांस लेने लायक भी नहीं बची थी, सड़कों पर गाड़ियों के कम होने से उसमें 50 से 60 प्रतिशत का सुधार हुआ। कोविड सेन्टरों से निकलने वाले गंदे पानी के मैनेजमेंट को लेकर हमने जो कुछ भी इस दौरान सीखा है उसका इस्तेमाल हम आगे चलकर नदी, झील और तालाब के साथ कर सकते हैं। हमने शुरुआत में पानी के इस्तेमाल को लेकर जिस प्रकार के बंटवारे की कही थी, यह आने वाले कई सालों तक जारी रहेगा। ऐसे में हमें यह भी समझना होगा कि जरूरत जितना इस्तेमाल ही इसके बर्बादी को रोकने की कुंजी है।

Author:
Shrey Arya | shreyarya46@gmail.com
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