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“क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व से बना शरीरा” यानी कि जिन 5 मूलभूत तत्वों से मिलकर हमारा शरीर बनता है उनमें से पानी भी एक है। हमारे शरीर का 3/4 भाग पानी ही है, लेकिन यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि हम फिर भी इसकी कीमत को नहीं समझते। हमारा देश एक जल संकट की कगार पर है, मौजूदा सभी पानी के स्त्रोत बर्बाद, ग्राउंड वॉटर कम और हम सभी लापरवाह होते जा रहे हैं। भारत में पूरी दुनिया की 18% आबादी रहती है मग़र उसके लिए लगभग 4% ताजे पानी का स्त्रोत ही मौजूद है। गुरुग्राम में भी ग्राउंड वाटर 33 से सरक कर 36 मीटर पर पहुंच गया है। नीति आयोग की “कम्पोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स, 2018” बताती है कि आने वाले कुछ सालों के अंदर देशभर के लगभग 21 प्रमुख शहर (जिनमें दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई तथा हैदराबाद भी शामिल हैं) जीरो ग्राउंड वाटर लेवल तक पहुंच जाएंगे| इतना ही नहीं, हरियाणा के 6,804 गावों में से 127 ऐसे हैं जहाँ पर हर रोज़ प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी भी नही है।

क्या सच में भारत में पानी की कमी है?
दरअसल इस बात को ऐसे समझिए कि भारत नदियों का देश है, उत्तर में हिमालय पर तमाम ग्लेशियर हैं, पूरे देश को सालाना लगभग 1100 से 1200 ml बारिश का पानी मिल जाता है और साथ ही दुनिया का नौवा सबसे बड़ा फ्रेश वाटर रिजर्व भी हमारे पास ही है। लेकिन इसके बाद भी पानी की दिक्कतों से जूझना, पानी की कमी नहीं बल्कि उसके खराब मैनेजमेंट को दिखाता है।

कैसे करें वाटर मैनेजमेंट ?
वाटर मैनेजमेंट यानी कि जल प्रबंधन कैसे करना है, इससे पहले हमें यह जानना होगा कि आखिर हमें ऐसा क्यों करना है ? साथ ही हम आपको उन जरूरी बातों के बारे में भी बताएँगे जिनका हमें खास ख्याल रखना होगा|

दरअसल पूरे देश में जनसंख्या का गुब्बारा फट चुका है| अभी भी एक बहुत बड़ी आबादी खेती पर गुजारा करती है और यूनेस्को की रिपोर्ट कहती है कि भारत दुनिया में ग्राउंड वाटर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाला देश है। हमारे पास सीमित मात्रा में ही पानी मौजूद है और हमें अगली पीढ़ी के लिए भी इसे बचा कर रखना है। ऐसे में बजट, जलवायु परिवर्तन, लोगों का रहन सहन, मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर साथ ही कम्युनिटी की हिस्सेदारी जैसे कुछ मुख्य पिलर हैं जिन पर सारा दारोमदार टिका है। किसी भी योजना को बनाते समय हमें इन 3 चुनौतियों को ध्यान में रख कर ही आगे बढ़ना होगा: –

  1. सामाजिक एवं प्राकृतिक चुनौतियां

    प्राकृतिक चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन की अपनी ठाठ है। ग्लोबल वार्मिंग ने जिस तरह से हमें प्रभावित किया है वह किसी से भी छिपा नहीं है। कई नदियों ने अपना रास्ता बदला लिया है और पिछले कुछ दशकों से मानसून के वक़्त जरूरत जितनी बारिष भी नहीं हो रही। यही कारण है कि दक्षिण हरियाणा समेत देश के कई इलाकों को सूखे का सामना करना पड़ता।

    अब ऐसा नहीं है कि पानी की कमी ही एकमात्र दिक्कत है। जिन इलाकों में पानी भरपूर मात्रा में पहुंच रहा है वहां भी पानी से जुड़ी दिक्कतें सामने आ रही हैं। उत्तर भारत में भूमिगत पानी का खपत 2 गीगाटन प्रतिवर्ष की दर से हो रहा है, आसान भाषा में समझिए तो यह मध्य प्रदेश के इंदिरा सागर बांध का 1/3 हिस्सा होता है। ऐसे में सिंचाई के नाम पर जो पानी की बर्बादी हो रही है हमें उसे भी रोकना होगा, और इसके लिए हम टैरिफ वाली नीति को भी अपना सकते हैं।

    हमारे देश का एक बहुत बड़ा तबका है जिसकी आमदनी के साथ-साथ रोजमर्रा के जीवन में पानी की जरूरतें भी बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए ऐसा समझिये की जहां पहले वाटर कूलर कुछ ही घरों में मौजूद हुआ करता था, आज यह हर घर में पाया जाता है| ऐसे में पानी के बढ़ते इस्तेमाल पर टैरिफ की मदद से नकेल कसी जा सकती है। हालांकि बड़े स्तर पर नीति को अपनाने के लिए इसमें थोड़े बदलाव की जरूरत भी होगी। हमें इस बात का खास ख्याल रखना होगा कि अलग-अलग तबके में सोशल स्टेटस को लेकर बटवारा ना हो जाए। इसीलिए हम इसकी दर को आय (Income) के हिसाब से भी बांट सकते हैं, जैसे: –

    ◆ अधिक आय और फैक्ट्रियों से पानी की पूरी लागत वसूली जा सकती है।
    ◆ मध्यमवर्गीय परिवारों से थोड़ी कम लागत।
    ◆ साथ ही वे लोग जो समाज के पिछड़े तबके से आते हैं, उन्हें एक सीमित मात्रा में पानी बिना टैरिफ के भी दिया जा सकता है।

    लोगों की भागीदारी (Community Involvement):- समाज के लोगों को एक साथ लाए बिना सारी तैयारियां महज़ कागज़ी रह जायेंगीं। हमारी तैयारियां ऐसी होनी चाहिए कि सभी लोगों के द्वारा आसानी से अपना किरदार अदा किया जा सके। महिलाओं को “पानी का पहरेदार” बनाकर इस ओर बढ़ा जा सकता है। हालांकि ग्रामीण इलाकों में उन्हें घर से बाहर लाकर अभियान के साथ जोड़ना बड़ी चुनौती होगी। रेन वाटर हार्वेस्टिंग, तालाबों की मरम्मत, एवं वृक्षारोपण जैसे अभियान हम बिना कम्युनिटी की मदद के नहीं चला सकते।

    लोगों के बीच पानी को लेकर जो धार्मिक भावनाएं बनी हुई है, उनका इस्तेमाल करते हुए भी हम उन्हें अपने साथ जोड़ सकते हैं। जैसे उत्तराखंड में मसान, राजस्थान का लसीपा, साथ ही हरियाणा के लोकनृत्य और लोकगीत।

  2. कानूनी चुनौती:- हमारे देश में पानी राज्यों के अंतर्गत आने वाला मामला है, अगर सरकारों के विचार किसी मुद्दे को लेकर आपस में मेल नहीं खाते तो वाटर मैनेजमेंट को अमलीजामा पहनाने में काफी देर लग सकता है। साथ ही हमारे कानूनों में बहुत सी कमियां है जिनका लोग फायदा उठाते है।

  3. राजनीतिक चुनौतियां:- बहुत से राज्यों की राजनीति पानी के इर्द-गिर्द ही घूमती है, ऐसे में पानी से जुड़े हुए मामलों के लिए पार्टी लाइन की पॉलिटिक्स को किनारे रखकर बातचीत और ट्रिब्यूनल्स (Tribunals) के माध्यम से ही परेशानी का हल निकालना होगा। इस वक्त देश में रावी, व्यास, नर्मदा, कावेरी और पेरियार जैसी तमाम प्रमुख नदियों के पानी को लेकर दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद चल रहा है। इतना ही नहीं, ग्राउंड वाटर की मैपिंग को लेकर भी कई राज्यों की तरफ से ढीला रवैया अपनाया जा रहा है जिसकी वजह से आने वाले वक्त में पानी के स्तर को ठीक करने में काफी दिक्कतें आयंगी।

    कितना वक्त लगेगा ?
    अब इन सभी कामों में वक्त कितना लगेगा यह तो इस बात पर निर्भर करता है कि योजनाएं किस स्तर की हैं। बांध या फिर नहर जैसी योजनाएं जो केंद्र या फिर राज्य सरकार के द्वारा चलाई जा रही हैं तो इनमें सालों का वक्त लग सकता है। लेकिन जहां पर बात सामुदायिक भागीदारी आती है तो सभी चीजें छोटे स्तर पर, यानी कि पंचायत और नगर पालिका तक ही सीमित रह जाएंगी। इसीलिए उसमे लगने वाला न सिर्फ वक्त और खर्च भी कम होगा। पर हां एक बात यह भी कि पंचायत और नगर पालिका वाली नीति को हमें लगातार जारी रखनी होगीं। जैसे कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग, टैंक बनाना, पेड़ लगाना और जल संसाधनों की सफाई करना।

    कुल मिला कर ……

    वाटर मैनेजमेंट की योजना सफल बनाने के लिए हमें एक अच्छी नीति और मौजूदा वक्त में उसकी स्वीकार्यता को भी ध्यान में रखना होगा। जनसंख्या हमारे लिए चिंता का विषय जरूर है, लेकिन हमें “जितने ज़्यादा हाथ उतनी ज़्यादा जागरूकता” वाली नीति का फ़ायदा भी मिल सकता है। ग्रामीण इलाकों में किसानों को जागरूक कर सिंचाई वाली समस्या से निपटना भी जरूरी है, देश में ऐसे बहुत से उद्योग हैं जिनके द्वारा बेलगाम पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है ऐसे में पानी से जुड़े हुए कानूनों को सख्ती से लागू करना होगा। सही मायने में जल का प्रबंधन यानी की वाटर मैनेजमेंट ही इस पूरी परेशानी का हल है। अब यह मैनेजमेंट प्रशासन (administration) की तरफ किया जाये या फिर किसी एनजीओ की तरफ से, लेकिन अंत में अगर सभी लोगों तक उनकी जरूरत के हिसाब से पानी पहुंच पा रहा है तभी जाकर हम उसे एक अच्छा मैनेजमेंट कहेंगे।

Author:
Shrey Arya | shreyarya46@gmail.com
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