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1804 में पूरे विश्व की जनसंख्या पहली बार बिलियन में पहुंची, यानी कि 100 करोड़ का आंकड़ा पार किया। फिर देखते ही देखते 1960 में तीन बिलियन, 1987 में पांच बिलियन, 2000 में छः और 2017 आते-आते 7.5 बिलियन यानी कि 750 करोड़!! दरअसल हुआ यह था कि 1987 में 11 जुलाई के दिन को लोग 5 बिलियन डे की तरह मना रहे थे, क्योंकि यही वह दिन था जिस दिन पूरी दुनिया की जनसंख्या लगभग 5 बिलियन हो गई थी, लोगों के अंदर इतनी रुचि देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भी इस दिन को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में घोषित किया। अब एक बात यहां पर मैं आपको स्पष्ट (clear) कर दूं कि विश्व जनसंख्या दिवस को मनाने का मकसद सिर्फ जनसंख्या को कंट्रोल करना नहीं है, बल्कि बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ जो समस्याएं सामने आ रही हैं उन पर भी जागरूकता फैलाना है। दरअसल यह देखा गया कि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है परिवार नियोजन, लिंग समानता (gender equality) और मातृ स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतें भी बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं गरीब देशों में पिछले कुछ दशकों से मानव तस्करी और बाल श्रम जैसे मामले भी ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। इसलिए हर साल 11 जुलाई को जनसंख्या से जुड़े हुए मुद्दे को लेकर उस साल का विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। हमारा देश भारत जनसंख्या के मामले में पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है यही कारण है की बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी और महामारी जैसी तमाम चुनौतियां हमारे लिए काफी बड़ी हो जाती है। 


कहने को तो भारत की 135 करोड़ वाली जनसंख्याह्यूमन रिसोर्स” के तौर पर काफी मददगार साबित हो सकती है, लेकिन लगातार कंट्रोल के बाहर जा रही जनसंख्या आज हमारे देश भारत के लिए भी मुसीबत बन गई है और इन्हीं सब में एक समस्या पानी की उपलब्धता को लेकर भी सामने आती है। वैसे तो पूरी पृथ्वी पर पानी की कोई कमी नहीं है लेकिन विडंबना यह है की केवल 1% से भी कम पानी हमारे इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इस बात को आप ऐसे समझिए कि अगर पूरी दुनिया के पानी को एक गैलन में डाल दें तो हमारे इस्तेमाल के लायक पानी एक चम्मच जितना है। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की माने तो 2025 तक दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी पानी की कमीसे परेशान हो सकती है, हजारों वर्षों से हमारी आबादी प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर बढ़ती आ रही थी, लेकिन पिछली कुछ शताब्दियों (centuries) में यह आंकड़ा बड़े ही नाटकीय ढंग से 600 करोड़ से भी ज्यादा बढ़ गया। अब चाहे वह घरेलू इस्तेमाल हो या फिर कृषि, और तो और फैक्ट्रियों में पानी की मांग जिस तरह से बढ़ी है उसके बारे में तो शायद ही किसी ने सोचा होगा। सबसे ज्यादा दिक्कत उन शहरों के लिए है जहां पर एक तो पहले से ही आबादी बहुत ज्यादा है और लगातार तेज रफ्तार से बढ़ती भी जा रही है। नीचे दिए गए ग्राफ से आप भारत मे प्रति व्यक्ति पानी की घटती मात्रा को समझ सकते हैं: –

क्या कहते हैं आंकड़े?
दरअसल आप इस बात को ऐसे समझिए कि अगर किसी इलाके में प्रति व्यक्ति साल में 1000 क्यूबिक मीटर से कम ताजे पानी की उपलब्धता है, तो ऐसा माना जाएगा कि वह इलाका पानी की समस्या से जूझ रहा है। क्योंकि जनसंख्या अकेले नहीं बढ़ती वह साथ में घरेलू, कृषि, नगर पालिका और फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होने वाले पानी की मांग को भी बढ़ाती है। ऐसा भी माना जा रहा है कि 2025 तक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता आधे से भी कम हो जाएगी। वर्ल्ड बैंक की जल और विकास रिपोर्ट ने 45 ऐसे देशों की पहचान की है जो पानी की कमी से जूझ रहे हैं, इन देशों में पाया गया कि, प्रति महिला औसतन 4.8 बच्चे हैं जो कि पूरी दुनिया की औसत का लगभग 2 गुना है।

कहां आ रही है समस्या?
आज की एक सच्चाई तो यह भी है कि हम चुटकी बजा कर आबादी को कम नही कर सकते, इसकी वजह से जो दिक्कतें है वह तो आने वाले वक्त में भी बनी रहेंगी। लेकिन ऐसी तमाम चीज़ें और भी हैं जिनकी वजह से वर्तमान में मौजूद साफ पानी भी कम होता जा रहा है। फैक्ट्रिय, रिहायशी इलाके, साथ ही इस महामारी के वक्त में कोविड सेंटरों से निकलने वाला पानी भी बिना किसी प्रोसेस के मीठे पानी के स्रोतों में बहाया जा रहा। ऐसे में जहां एक तरफ पहले से ही पानी की कमी है, हमारी गैर जिम्मेदाराना हरकतों की वजह से हालात और भी ज्यादा गंभीर होते जा रहे हैं।

आज बढ़ती जनसंख्या को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि बहुत से ऐसे देश है जहां पर महिलाएं गर्भनिरोधक या तो इस्तेमाल नहीं करना चाहती या फिर उनके बारे में जानती तक नहीं है। फैमिली प्लानिंग यानी कि परिवार नियोजन जैसा कॉन्सेप्ट्स अभी तक उनकी सोसाइटी में आया ही नहीं है।

पानी को लेकर कितना बड़ा हंगामा मच सकता है इसको जानने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। अपने ही देश में कावेरी नदी का मामला ले लीजिए, तमिलनाडु और कर्नाटक में जिस तरह का दंगा भड़का था उसको देख कर तो ऐसा ही लग रहा था कि दोनों राज्यों के लोगों ने एक दूसरे के खिलाफ जंग छेड़ दिया हो। अब यहां तो हम दो ऐसे राज्यों की बात कर रहे हैं जहां पर एक ही देश का कानून और लगभग एक ही प्रकार की संस्कृति पाई जाती है। सोचिए तब क्या होगा जब विश्व भर में कई देशों से होकर गुजरने वाली नदियों पर इस तरह का विवाद खड़ा होगा



आख़िर कैसे बाहर निकलें ?
दरअसल ज्यादातर देशों में पानी की उपलब्धता से ज्यादा पानी के मैनेजमेंट की वजह से समस्या आ रही है, और यही हालात हमारे भारत में भी हैं। अब यहां पर हमारे मन मे यह खयाल भी आ सकता कि मानसून और हिमालय से हमारे देश को जितना पानी मिलता है अगर ठीक तरह से उसका मैनेजमेंट किया जाए तो शायद देश के अधिकांश हिस्से को पानी की समस्या से बाहर निकाला जा सकता है!! शायद हां…… शायद इसलिए क्योंकि इसके इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने में लगने वाला पैसा काफ़ी ज़्यादा है। लेकिन जब हम इसी “वाटर मैनेजमेन्ट” वाली सोच को छोटे स्तर पर प्रयोग करते हैं तो रेन वाटर हार्वेस्टिंग और वाटर टैंक की मदद से इसका फायदा उठाया जा सकता है। 

गुरुग्राम जैसे मैट्रो शहर इसको अपनाने के लिए बिल्कुल ठीक है क्योंकि इस पूरे इलाके में 71 सेंटीमीटर जितनी सालाना बारिश ही नसीब होती है। ऊपर से जनसंख्या भी लगभग 30 लाख की है, और अगर इसमें दूसरे शहरों से कामकाजी लोगों की आबादी भी मिला दे तो 50 लाख तक पहुंचने का अनुमान है। इसीलिए गुरुग्राम जिला प्रशासन के आदेश पर गुरुजल सोसाइटी लगातार छोटे मग़र प्रभावी कदम उठा रही है। पूरे इलाके में इस विषय को लेकर जागरूकता फैलाते हुए अब तक हमारी टीम ने कुल 5 तालाबों का नवीनीकरण, 137 की प्रोफाइलिंग, 640 रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की चेकिंग और 160 कार्यशालाओं (Workshop) को पूरा किया है। गुरुग्राम की कंपनियों को सामने ख़ुद को “वाटर न्यूट्रल” बनाने का लक्ष्य भी रखा गया है, ऐसे में ये सारी कंपनियां गुरुजल सोसाइटी से जुड़कर “सीएसआर” के जरिए अपना योगदान भी दे सकते हैं।
इस तरह की पहल देश के सभी घनी आबादी वाले शहरों में की जानी चाहिए, एक वाटर मैनेजमेंट बॉडी बना कर ही ठीक प्रकार से वहां के लोगों तक जरूरतों के हिसाब से पानी की आपूर्ति की जा सकती है। ऐसे में जहां एक तरफ ना सिर्फ हम अपने आप को जनसंख्या के जाल से बाहर निकाल पाएंगे बल्कि आसपास की कम्यूनिटी को भी अपने साथ जोड़ सकेंगे।

Author:
Shrey Arya | shreyarya46@gmail.com
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