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अरावली, जिसकी पहाड़ियां कभी जंगलों से ढका हुआ करती थी आज वह बंजर एवं वीरान दिखती हैं, साल के अधिकतम महीनों में बहने वाली नदियां अब महज़ मौसमी बनकर रह गई हैं। आज अरावली की जो हालत है वह 4 या 5 सालों की कहानी नहीं, बल्कि पिछले चार से पांच दशकों से पर्यावरण पर हो रहे अत्याचार की गाथा है। गाथा जिसे अगर वह सुनाने बैठ गई तो यह कॉंक्रीट के जंगल भी रो पड़ेंगे। आज जरूरत है तो मामले की गंभीरता को समझने की, अगर वक्त रहते अरावली की अमानत हमने उसे वापस नहीं की तो हमारे पास वह कल नहीं बचेगा, जिसकी आस में हम गैर जिम्मेदाराना तरीके से अरावली की छाती चीरकर अवैध काम किये जा रहे हैं।

अरावली का यह नाम कैसे पड़ा? इसको लेकर किताबों में कुछ साफ-साफ तो नहीं मिलता है, लेकिन कुछ का मानना है कि अरा मतलब पंक्ति या लाइन और वली का मतलब पर्वत या फिर ऊंचाई, और इस तरह से देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला को उसका नाम मिलता है, “अरावली” यानी की ऊंचाइयों से बनी हुई एक पंक्ति। कुछ लोग यह भी कहते हैं, क्योंकि यह देखने में आरी की तरह लगता है इसीलिए पहले इसका नाम आरीवली था लेकिन, वक्त के साथ-साथ यह बदलकर अरावली बन गया। कई धार्मिक ग्रंथों में भी इसका नाम आता है।

न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में अरावली का नाम आता है आप इस बात को ऐसे समझिए कि अगर हिमालय एक स्कूल जाता बच्चा है तो अरावली के साथ उसका रिश्ता दादा-पोते का होगा। जी हां सही पकड़े, तो इतना पुराना है हमारा अरावली! अब अगर किस्से कहानियों से हटकर जरा भूगोल की भाषा में अरावली को समझे तो, यह एक वलित पर्वत ( Fold mountain) है जोकि पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटो के आपस में लड़कर मुड़ने से बना है। नीचे दिया गया एनिमेशन आपको यह बात और आसानी से समझाएगा।

लगभग 700 किलोमीटर लंबा अरावली पर्वत भारत के 4 राज्यों हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान एवं गुजरात में फैला हुआ है। हालांकि दिल्ली पहुंचते-पहुंचते “मजनू का टीला” के पास यह लगभग मैदान में बदलने लगता है। यहां तक की हमारे देश का राष्ट्रपति भवन जिस रायशिला हिल्स पर है वह भी अरावली का ही हिस्सा है। इसकी सबसे ऊंची चोटी को गुरु शिखर नाम दिया गया है जो कि माउंट आबू में है। अरावली के पश्चिम भाग का नाम मारवाड़ तो पूर्वी का नाम मेवाड़ पड़ा और यहीं से मारवाड़ी और मेवाड़ी कम्युनिटी भी निकल कर आती है।

अरावली का महत्व
अरावली का बायोडायवर्सिटी पार्क न जाने कितने ही तरह के जीव जंतुओं और पेड़-पौधों को उनका घर देता है, और साथ ही भील, दामोर और कठोदिया आदिवासी भी यहीं पर बसते हैं। आपको बता दें कि पूरे दिल्ली एनसीआर के इलाके में सिर्फ अरावली ही वह जगह है जहां से ग्राउंडवाटर रिचार्ज होता है।
अपनी पोजीशन की वज़ह से यह थार के रेगिस्तान को दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नहीं पहुंचने देता। वरना जिस प्रकार की बारिश दिल्ली में होती है उस हिसाब से तो वह एक सूखा इलाका बन जाता। ना सिर्फ इतना बल्कि यह तो बारिश के मौसम में आने वाले मानसूनी हवाओं के यह समानांतर (यानी कि parallel) होने के कारण उसे रोकता नहीं है, यही वजह है की उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में अच्छी बारिश हो पाती है और कई नदियों को भरपूर पानी मिल पाता है।
इतना ही नहीं राजस्थान की ओर से उड़कर आने वाली धूल से भी यह पूरे एनसीआर के इलाकों को बचाता है, जो कि दिल्ली की हवा में प्रदूषण को कंट्रोल में रखता है।
लेकिन पिछले कुछ दशकों से उत्तर-पश्चिम का लंग्स कही जाने वाली अरावली आज प्रदूषण और अवैध माइनिंग का धुआं फूंक रही है। यह सिर्फ अरावली ही है जिसकी वजह से दिल्ली और आसपास के शहरों को भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन मिल पाता है, लेकिन चिंता की बात यह है कि आज अरावली खुद वेंटीलेटर पर है। एक वक्त था जब अरावली के जंगलों को बाघ एवं तेंदुओं का घर माना जाता था, लेकिन 2017 में हुए सर्वे के अनुसार जहां एक ओर बाघ धीरे-धीरे इलाके से खत्म हो गए तो दूसरी ओर तेंदुए भी महज 31 ही बचे हैं।

अरावली को लेकर चिन्ताएं
दरअसल अरावली की गर्दन पर सबसे बड़ी तलवार उसी ने रखी जिसे उसकी ढाल का काम करना था, जी बिल्कुल सही समझा अपने, हम यहां पर बात कर रहे हैं विकास की दौड़ में अंधी हो चुकी सरकारों की, खासतौर पर हरियाणा और राजस्थान की सरकारें। आपको यह बात सुनकर हैरानी जरूर होगी मगर अभी तक राजस्थान में अरावली की कुल 31 पहाड़ियां गायब हो चुकी है, इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने भी राजस्थान सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि “क्या लोग हनुमान बन गए हैं जो पहाड़िया लेकर भागे जा रहे हैं? इस अवैध खनन से राजस्थान को जो फायदा हुआ है उससे दिल्ली के लोगों का स्वास्थ्य वापस नहीं लाया जा सकता।
इतना ही नहीं हद तो तब हो गई जब राजस्थान के बाद हरियाणा सरकार ने भी वन नियमों को ताक पर रखकर कानून में ऐसे बदलाव किए जिसके बाद अरावली की पहाड़ियों में पेड़ को काटने और भवन निर्माण को लेकर रास्ता साफ हो गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने हरियाणा सरकार को भी फटकार लगाते हुए कहा कि “हम जानते हैं आपकी मंशा क्या है, लेकिन कोई भी कानून से ऊपर नहीं होता, यह एक गंभीर मामला है जिसमें आप कोर्ट के आदेशों के खिलाफ नया कानून बनाने की कोशिश ना करें।”

इस फसाद की जड़ क्या है?
इस बात को आप जरा ऐसे समझिए कि अरावली दरअसल देश का वह हिस्सा है जहां पर रहने वाले लोगों को ना तो कोई उद्योग या फैक्ट्रियां मिली और ना ही ऐसी जमीन जहां पर अच्छी आमदनी वाली फसल की खेती की जा सके। ऐसे में कॉपर, ज़िंक, सिलिकेट, रेड सैंड और क्वार्ट्ज से भरपूर अरावली में मजदूरी के अलावा उनके पास और कोई दूसरा चारा नहीं था। इसी वजह से हद से ज्यादा अवैध खनन अरावली को मिटाता गया। ना सिर्फ इतना, सरकारों ने भी विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण को ताक पर रख दिया। प्रशासन में भ्रष्टाचार इस हद तक घर कर गया है कि कुछ व्यापारियों के फायदे के लिए अवैध खनन की सच्चाई से आंखें तक फेर ली जाती हैं।

ऐसी बातें सबसे ज्यादा तब खलती है जब एक तरफ तो कुछ चुनिंदा संस्थान पुरजोर मेहनत के साथ अरावली को बचाने में लगे हुए हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ अवैध खनन कहीं ज्यादा रफ्तार से उसे खत्म करने में। हालांकि कम तादाद में ही सही लेकिन पर्यावरण की चिंता करने वालों की मेहनत रंग जरूर ला रही है, भारतीय वन्यजीव संस्थान के 2019 तक के आंकड़ों के अनुसार तेंदुओं की संख्या बढ़कर 31 से 45 पहुंच गई है। हरियाणा सरकार ने भी हालात की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए गुरुग्राम के पास बायोडायवर्सिटी पार्क के लिए जगह की पहचान को लेकर घोषणा की, जिसके बाद गुरुग्राम जिला प्रशासन के आदेश पर गुरुजल सोसाइटी की टीम बायोडायवर्सिटी पार्क और अर्बन सिटी फॉरेस्ट की मदद से वन क्षेत्र को 9.24% से 10.24 % तक बढ़ाने पर काम कर रही है।दमदमा और खेरला इलाके में आने वाले 420 एकड़ के बायोडायवर्सिटी पार्क को बचाने के लिए गुरुजल ने कुछ जरूरी लक्ष्य भी तय किए हैं, जैसे: –

(1) जंगलों के क्षेत्र को बढ़ाना
(2) लोकल जीव और पेड़ पौधों को बचाना
(3) आसपास के समुदायों के लिए आमदनी का मॉडल तैयार करना
(4) पानी और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा
(5) इको टूरिज्म को बढ़ावा देना

अरावली को पहले जैसा बनाना मुश्किल जरूर है मगर उसके अलावा फिलहाल तो कोई दूसरा रास्ता भी नजर नहीं आता, जरूरत है तो मिशन मोड पर पेड़ों की कटाई तथा खनन को रोकते हुए प्रदूषण के स्तर पर काबू पाने की, साथ ही अवैध कब्जे और गैर जिम्मेदाराना विकास कार्यों को रोकने की। आसपास की लोगों को भी हमें इसकी अहमियत समझानी होगी, क्योंकि अंत में अरावली के साथ अच्छा हो या फिर बुरा, पहला प्रभाव तो उन्हीं पर पड़ेगा।

Author:
Shrey Arya | shreyarya46@gmail.com
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